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15:37, 7 जनवरी 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
| संग्रह =
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<poem>
मुझे कोई परेशानी नहीं है
ज़रा सी भी तो हैरानी नहीं है
लुटेरे ही लुटेरे हैं यहाँ सब
कोई भी शक्ल अनजानी नहीं है
मेरी क़िस्मत में सहरा का सफ़र है
लिखी है प्यास और पानी नहीं है
जो मेरे साथ चलना है, चले आओ
रहे-उल्फ़त में वीरानी नहीं है
'रक़ीब'-ए-दिल पे फिर बिजली गिराई
समझकर ये, कि दिल फ़ानी नहीं है
</poem>