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ज़िन्‍दाने – कुहन के
‘जयहिन्‍द’ के नारों से फ़ज़ा गूंज गूँज रही है ‘जयहिन्‍द’ की आलम में सदा गूंज गूँज रही है
यह वलवला यह जोश यह तूफ़ान मुबारक
ऐसा न हो गफ़्लत में गुज़र जाये कहीं वक़्त
लाज़िम है कि मंज़िल के निशां निशाँ पर हों निगाहें
पुरपेच हैं राहें
वह सामने आज़ादिए-कामिल का निशां निशाँ हैमक़सूद वही है, वही मंज़िल का निशां निशाँ है
दरकार है हिम्‍मत का सहारा कोई दम और
दो चार क़दम और
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