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मेरा गाँव / केदारनाथ अग्रवाल
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03:50, 9 जनवरी 2011
आकर्षण आने से पहले यौवन ढलता।
रूप अविकसित विवश पराया होकर पलता॥
डाले
डाके
पड़ते हैं कामिनियों के अंगों पर।
कामुक जन निर्लज्ज थिरकते भ्रू-भंगों पर॥
कुल-भूषण कुल-दूषण बनते मान गँवाते।
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