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स्वर्ग सरि / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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21:11, 22 जनवरी 2011
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'''मंदाकिनी घाटी को समर्पित एक कविता'''
स्वर्ग सरि मंदाकिनी, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी !
मुझको डुबा निज काव्य में, हे स्वर्ग सरि मंदाकिनी ।
अनिल जनविजय
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