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काश कि फिर वह सहर आती/ विनय प्रजापति 'नज़र'
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,
21:02, 19 मार्च 2011
पर तू फिर भी इधर आती
सहाब<ref>बादल</ref>
दिखें
हैं
सूखे
दरया पे
कभी
और
बारिश
भी
टूटकर आती
कई मौतें मरकर देखीं
विनय प्रजापति
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