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06:16, 21 मार्च 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
|संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खिलेंगे / आलोक श्रीवास्तव-२
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
एक चेहरा
जो बहुत दिनों बाद
अचानक दिखा हो!
एक छाया
जो चुपचाप
टीलों और पहाड़ियों पर
खो गई हो!
एक शाम
जिसमें कुछ विदा की स्मृतियां हैं
हटाती ही न हो
ख़्यालों से
चलो! बहुत हुई अतीत की याद
डूबेगा उसी सुदूर में
यह भी दिन
यह भी धूप!
</poem>