Last modified on 21 मार्च 2011, at 11:46

यह भी दिन, यह भी धूप / आलोक श्रीवास्तव-२

एक चेहरा
जो बहुत दिनों बाद
अचानक दिखा हो!

एक छाया
जो चुपचाप
टीलों और पहाड़ियों पर
खो गई हो!

एक शाम
जिसमें कुछ विदा की स्मृतियां हैं
हटाती ही न हो
ख़्यालों से

चलो! बहुत हुई अतीत की याद
डूबेगा उसी सुदूर में
यह भी दिन
यह भी धूप!