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अभिमन्यु-1 / मंगत बादल

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मंगत बादल }} {{KKCatKavita‎}}<poem>चक्रव्यूह भेदने की
कोशिश में अभिमन्यु
हर बार गिर पड़ता है