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अभिमन्यु-1 / मंगत बादल
Kavita Kosh से
चक्रव्यूह भेदने की
कोशिश में अभिमन्यु
हर बार गिर पड़ता है
युद्ध के मैदान में।
मैं मन को समझाता हूँ-
टूटे हुए पहिये से
आखिर कब तक लड़ोगे?
व्यूह भेदन का ज्ञान ही
सब कुछ नहीं है
जरूरी है जान लेना
उन महारथियों की चाल
उनका छलछद्म
वरना युद्ध में गिर पड़ोगे
समयानुसार बदल गई हैं
सभी मान्यतायें
लोग सिद्धान्तों को
सुविधा बनाकर ओढ़ लेते हैं
और सम्बन्धों से
स्वार्थ का सत्व निचोड़ लेते हैं।
अभिमन्यु!
पहले इन सबको समझो
फिर महारथियों से उलझो
मुझे विश्वास है
विजय श्री तुम्हें अपनायेगी;
मैं निश्चित् रूप से कहता हूँ
इस बार महाभारत की विभीषिका
नहीं दोहरायी जायेगी।