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16:51, 28 मार्च 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=देव
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<poem>सीतल महल महा, सीतल पटीर पंक,
सीतल कै लीपि भीत, छीत-छात दहरें ।
सीतल सलिल भरे, सीतल विमल कुंड,
सीतल अमल जल-तंत्र-धारा छहरें ॥
सीतल बिछौनन पै, सीतल बिछाई सेज,
सीतल दुकॊल पैन्हि पौढ़े हैं दुपहरें ।
देव दोऊ सीतल अलिंगनन लेत-देत,
सीतल सुगंध मंद मारुत की लहरें ॥
</poem>