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|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
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<poem>
मेरे दमघोंटू-टूटे परिवेश में
एक सूरज है
जो मित्रता का
संघर्षपूर्ण जीवन जीने के लिए बाध्य है ।

एक अमोला है
जो महत्वाकांक्षा की
किसी निश्चित ऊँचाई तक
बढ़ रहा है....।
बढ़ता जा रहा है ।

बिखराव के बोध से बिंधा
टूटी पंखुरियों वाला एक गुलाब
मेरे आस-पास खिले रहने की चेष्टा करता है ।
गुलाब : मैं आज तक
:नहीं गा सका हूँ जिसकी गंध ।
:नहीं दे सका हूँ जिसकी पंखुरियों को क्रम ।
वही टूटी पंखुरियों वाला गुलाब मेरे आस-पास
खिले रहने की चेष्टा करता है ।

मेरे दमघोंटू परिवेश में-
जी रहा है एक सूरज ।
बढ़ रहा है एक अमोला ।
खिल रहा है टूटी पंखुरियों वाला एक गुलाब !
</poem>
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