Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=कल सुबह होने के पहले / श…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
}}
{{KKCatKavita‎}}
<poem>
रगों में जो हमारी दौड़ता है
लहू है-आग जल्दी पकड़ता है !
अब
इसे बाहर निकालेंगे
और खुद पर ही उछालेंगे !

बन्धु !
यदि तुम पर कहीं पड़ जायँ छींटे
सोचना.......................!
अच्छा न लगने पर इन्हें धोना !
और यदि भा जाँय
तो यह मानकर : उनमें कहीं हम हैं
उम्र भर महसूस करना :
पसीने में नहाते बहुत दिन बीते !
(1965)
</poem>
916
edits