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17:10, 4 अप्रैल 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जिस
दिशा में
गया है मेरा मित्र
उधर से ही
आ रही है यह भयानक आँधी
मुँह पर ज्वालामुखी का मलवा पोते !
आशीर्वाद देने वाले
अपने-अपने घरों में
आराम से बैठे होंगे !
बड़े बरे होंगे !
(1965)
</poem>