भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ग्रीष्म-संध्या / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
जिस
दिशा में
गया है मेरा मित्र
उधर से ही
आ रही है यह भयानक आँधी
मुँह पर ज्वालामुखी का मलवा पोते !
आशीर्वाद देने वाले
अपने-अपने घरों में
आराम से बैठे होंगे !
बड़े बरे होंगे !
(1965)