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{{KKRachna
|रचनाकार=ज़िया फतेहाबादी
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शब ए ग़म है मेरी तारीक बहुत |
हो न हो सुबह है नज़दीक बहुत |
उन से मैं दूर हुआ ख़ूब हुआ
आ गए वो मेरे नज़दीक बहुत |
ग़म ए जानाँ मेरे दिल से न गया
की ग़म ए दहर ने तहरीक बहुत |
मिल गई मर के हयात ए जावेद
तेरे बीमार हुए ठीक बहुत |
कम से कम हुस्न की रुसवाई में
थी ग़म ए इश्क़ की तज़हीक बहुत |
रहनवरदान ए जुनूँ बैठ गए
मंज़िल ए शौक़ थी नज़दीक बहुत |
ऐ " ज़िया " हम को दर ए साक़ी से
कम सही फिर भी मिली भीक बहुत |
</poem>