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10:39, 3 मई 2011 {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }}
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१- मजबूरियों का,
अन्तहीन सिलसिला,
आत्मदाह के लिए ,
जैसे घी की आहुति।
२- कहते हैं लोग,
आत्महत्या कायरता है,
लेकिन जिल्लतभरी ज़िन्दगी,
उससे भी बड़ी कायरता है|
३- कोई भी सख्स,
यूँ ही आत्यहत्या नहीं करता,
कोई तो मजबूरी होगी?
जो ज़िन्दगी से बड़ी होगी।
४- ज़िन्दगी की मजबूरियों ने,
ज़ज़्बातों और अहसासों की,
हत्या कर दी।
५- मजबूरियों की गहरी खाई,
हर रास्ते की नाकाबंदी,
न फ़रियादी ,
न फ़रियाद सुनने वाला,
तभी उसने आत्महत्या की होगी,
ताकि ईश्वर के दरबार में,
अपनी बेटी के जीवन के लिए,
फ़रियाद तो कर सके।
<poem>