{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= नीरज दइया
|संग्रह=साख / नीरज दइया
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita}}
<poem>
थूं अर म्हैं पाळ्यो
हजार-हजार रंगां रो
एक सुपनो।
थारी अर म्हारी दीठ रो
थारै अर म्हारै सुपनां रो
एक घर हो
जिको अबै धरती माथै
कदैई नीं चिणीजैला।
मा कैवै-
मूरखता है
घर थकां रिंधरोही मांय हांडणो।
बाळ दे- नुगरा सुपनां नै
जिका दिरावै थाकैलो
अर करावै
बिरथा जातरा।
</poem>
'''कविता का हिंदी अनुवाद'''
<poem>तुमने और मैंने पाला
हजार-हजार रंगों का