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दो कविताएँ / शलभ श्रीराम सिंह
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12:01, 27 जून 2011
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<poem>
खिड़कियाँ जो खुली हैं इस
बक्त
वक्त
इनमें --कहीं कोई एक चेहरा है तुम्हारा !
और नीचे सड़क पर चलती हुई इस भीड़ में
Himanshu
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