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<poem>
'''दोहा'''
''(आशीष पाकर कवि-प्रसन्नता-वर्णन)''

आसिष पाइ, उपाइ-बिनु, लाख-भाँति अभिलाखि ।
सफल कियौ जीबन मनौं, रंक पाइ सुर-साखि ॥५७॥
</poem>
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