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आसिष पाइ, उपाइ-बिनु / शृंगार-लतिका / द्विज
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दोहा
(आशीष पाकर कवि-प्रसन्नता-वर्णन)
आसिष पाइ, उपाइ-बिनु, लाख-भाँति अभिलाखि ।
सफल कियौ जीबन मनौं, रंक पाइ सुर-साखि ॥५७॥