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ठौर-ठौर निरखि मरंद सौ झरत रस / शृंगार-लतिका / द्विज
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मनहरन घनाक्षरी
(भारती देवी का आशीर्वाद-वर्णन)
ठौर-ठौर निरखि मरंद सौ झरत रस, सुकबि-मलिंद वै भुलैहैं तन-मन तैं ।
’द्विजदेव’ की सौं या सिँगार की सलौनी-लता, बीस-बिसैं फैलिहैं सुबुद्धि उपबन मैं ॥
प्रीति अति बाढ़िहैं बिलोकि रस-रीति याकी, राधा अरु माधव खी बरन-बरन पैं ।
सुरुचि सुगंधित सरस कछु ह्वै हैं अति, तीनि हूँ भुवन याके तीनि हीं सुमन तैं ॥५६॥