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01:57, 6 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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{{KKPageNavigation
|पीछे=कलम गह्यौ मनकै सुदृढ़ / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=रसिक रीझिहैं जानि / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 6
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<poem>
'''सोरठा'''
''(कवि प्रार्थना-वर्णन)''
रसिक छमैंगे भूल, ग्रंथ लिख्यौ जिनके हितै ।
पढ़त-गुनत सुख-मूल, प्रति आखर सबकौं सुखद ॥
</poem>