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बेरुख़ी तो मेरे सरताज नहीं होती है / गुलाब खंडेलवाल
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19:57, 7 जुलाई 2011
पर वो पहले सी नज़र आज नहीं होती है
रूप
मोहताज़
मोहताज
है बन्दों की नज़र का लेकिनबंदगी रूप की
मोहताज़
मोहताज
नहीं होती है
सर पे काँटें भी बड़े शौक से रखते हैं गुलाब
ताजपोशी तो बिना ताज नहीं होती है
<poem>
Vibhajhalani
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