{{KKRachna
|रचनाकार=एम० के० मधु
|संग्रह=बुतों के शहर में/ एम० के० मधु
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
देखता हूं हूँ प्रेम
बसंत की हर सुबह
सरसों के पीले फूलों पर
सुनता हूं हूँ प्रेम
हर बारिश में
नन्हीं-नन्हीं बूदों बूंदों से
महसूसता हूं हूँ प्रेम
हवाओं के ताल पर
बिखरते तेरे गेसुओं में
बांटता हूं बाँटता हूँ प्रेम
जीवन में
आधा मुझे, आधा तुझे।तुझे ।
</poem>