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प्रेम / एम० के० मधु
Kavita Kosh से
देखता हूँ प्रेम
बसंत की हर सुबह
सरसों के पीले फूलों पर
सुनता हूँ प्रेम
हर बारिश में
नन्हीं-नन्हीं बूंदों से
महसूसता हूँ प्रेम
हवाओं के ताल पर
बिखरते तेरे गेसुओं में
बाँटता हूँ प्रेम
जीवन में
आधा मुझे, आधा तुझे ।