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पूरब-पश्चिम दोनों दिशि से उमड़ रही है आग / गुलाब खंडेलवाल
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19:51, 19 जुलाई 2011
पूरब-पश्चिम दोनों दिशि से उमड़ रही है आग
घर में अर्गल लगा शान्ति से सोनेवाले
!
जाग
. . .
सिर देकर ही स्वतंत्रता का मूल्य चुकाना पड़ता
पूरब-पश्चिम दोनों दिशि से उमड़ रही है आग
घर में अर्गल लगा शान्ति से सोनेवाले जाग
<poem>
Vibhajhalani
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