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{{KKRachna
|रचनाकार=वत्सला पाण्डे
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>सोचती रही हूं अक्सर

अंधेरों में कौंधती
बिजलियों के
प्रथम स्पर्श में
क्या दिया था
तुमने

एक फलसफा
जिसे
पढते रहे सब
मगर मैं नहीं

या
एक त्रासदी
जिसे भोगने का
दायित्व दे दिया गया
मुझे

न जाने कब
एक दिन
रंगों से भर गया
कैनवास मेरा

उकेर लिया खुद को
</poem>
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