Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वत्सला पाण्डे |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>कितने दिन हो ग…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वत्सला पाण्डे
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>कितने दिन हो गए
जागते हुए
नींद भर गई
आंखों में

दिखने लगे हैं
बिना चेहरे वाले
आदमी

वे बोलना चाहते हैं
खाना चाहते हैं
सूंघना चाहते हैं
देखना चाहते हैं
पर
सुन भी नहीं पाते

प्रतिक्र्र्रिया में
शब्द गिर पडे. हैं
किसी कुंए में

मुंडेर पर खड़ा
आसमान
झांक रहा

देख रहा
विस्मय से
क्या
बिना चेहरे वाले
आदमी
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
5,484
edits