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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वत्सला पाण्डे |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>जल नहीं एक जर्…
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{{KKRachna
|रचनाकार=वत्सला पाण्डे
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>जल नहीं
एक जर्रा भी नहीं

ताक रहा चारों ओर
कि कब
जख्म को मिले
एक स्पर्श

समेट ले सारा लहू
जो बह गया था
शिराओं से

दंडक अरण्य
उग आया है
आंखों में
</poem>
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