636 bytes added,
23:05, 21 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वत्सला पाण्डे
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>जंगल में
तितलियां ही नहीं
अजगर भी
हुआ करते हैं
उजाले तो नहीं
मगर गहरे अंधरे
हुआ करते हैं
एक काली सी
परछाईं है कि
लील जाती है
जंगल के जंगल
हवा भी दम साधे
देखती रही है
जैसे हो नज़ारा
एक रंगहीन
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader