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जंगल के रंग हो रहे . . ./ वत्सला पाण्डे
Kavita Kosh से
जंगल में
तितलियां ही नहीं
अजगर भी
हुआ करते हैं
उजाले तो नहीं
मगर गहरे अंधरे
हुआ करते हैं
एक काली सी
परछाईं है कि
लील जाती है
जंगल के जंगल
हवा भी दम साधे
देखती रही है
जैसे हो नज़ारा
एक रंगहीन