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16:32, 1 सितम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
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<poem>
'''ध्यान दें''' समाज पर अग्रज हमारे सब,
अनुजों की कोशिशों को बढ़ के '''उत्थान दें'''|
'''उत्थान दें''' जन-मन रुचिकर रिवाजों को,
भूत काल वर्तमान भावी को भी '''मान दें'''|
'''मान दें''' मनोगत विचारों को समान रूप,
हर बार अपनी ही जिद्द को न '''तान दें'''|
'''तान दें''' पताका उच्च हिंद की जहान में औ,
उस के तने रहने पे भी फिर '''ध्यान दें'''||
सांगोपांग सिंहावलोकन छन्द:-
*घनाक्षरी कवित्त की तरह ८+८+८+७ = ३१ अक्षर / वर्ण
*अंत में गुरु वर्ण
*पहले चरण के अंत के शब्द दूसरे चरण के शुरू में, दूसरे के तीसरे, तीसरे के चौथे चरण के शुरू में आने चाहिए
*चौथे चरण के अंत के शब्द पहले चरण के शुरू के शब्दों के समान होने चाहिए
*प्रस्तुत छंद में 'दें' शब्द सम्मिलित और अर्थ पूर्ति करने वाला शब्द है
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