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16:43, 10 सितम्बर 2011 <poem>भोर उठि कहु गंगा गंगा, जौ सुख चाहिये भाई<br />पापी एक रहे अति धनि जाय मगह मरी जाई<br />तकरा तन गिद्ध काग नै खाय, गीदड़ देखि डेराई<br />गली गेल मांस पहरा करि, हारे रोम-रोम बिलखाई<br />इ देखु गंगा जी के महिमा उपर पंख फ़हराई<br />लक्ष्मी पति गिरिजा के नन्दन चलय निशान लगाई
</poem><br /><br /><br />
'''यह गीत श्रीमति रीता मिश्र की डायरी से'''