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सिकुड़नें मुख मंडलों पर शत्रुभय की / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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08:54, 21 सितम्बर 2011
है असंगत घोषणा अपनी विजय की
श्रंृखला
श्रृंखला
विश्वासघातों की बड़ी है
मित्रता अक्सर बहुत मंहगी पड़ी है
सत्यता का नग्न तन सहमा खड़ा है
Tanvir Qazee
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