मुम्बई महानगर के बैंक में
बड़ा ओहदेदार है
पापा अकेले पड़े हुए हैं पुराने घर में
उस घर में जहाँ बारी-बारी
बच्चों के जवान होने से पहले
दिवंगत हो गई थी
पापा तीनों बेटों को कंधों पर बिठाए
पार करते रहे ज़िन्दगी की वैतरणी
बच्चों को पालने-पोसने में
पापा की उम्र निकल गई
उन्होंने बच्चों के सामने
कभी नहीं की अपनी परवाह
पापा घर छोड़कर बच्चों के पास कम जाते हैं
जाते भी हैं तो जल्दी लौट आते हैं
बच्चों के पास पापा के लिए
इतना वक़्त कहाँ है भला
तीज-त्यौहार के आसपास बच्चों को
पापा की याद आती है तो
तब तक प्रतीक्षा में काठ हो जाते हैं पापा
ज़िन्दगी का हिसाब-क़िताब जोड़ते-घटाते पापा
सोचते हैं आख़िर अकेलेपन के सिवा
उनके जीवन में क्या बचा है