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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

|संग्रह=सुबह की दस्तक / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

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<poem>
नैतिक दायित्वों को पूरा करना है
ये समझो बेमौत मुझे भी मरना है

अपनी ही पीड़ा में उलझा बैठा हूँ
सोचा था संसार की पीड़ा हरना है

क्या होगा इस देश की गायों-भैंसों का
नेताओं को जब चारा भी चरना है

मेरा हाथ पकड़ कर बोली वो लड़की
प्यार किया तो दुनिया से क्या डरना है

बापू से आखि़र हमने कुछ तो सीखा
बात-बात पर आन्दोलन है धरना है

मेरे रोने पर कितने खुश दिखते थे
मेरा हँसना उनको बहुत अखरना है

संघर्षों से भागो नहीं ‘अकेला’ तुम
आग में तप कर सोना और निखरना है
<poem>
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