भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नैतिक दायित्वों को पूरा करना है /वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
Kavita Kosh से
नैतिक दायित्वों को पूरा करना है
ये समझो बेमौत मुझे भी मरना है
अपनी ही पीड़ा में उलझा बैठा हूँ
सोचा था संसार की पीड़ा हरना है
क्या होगा इस देश की गायों-भैंसों का
नेताओं को जब चारा भी चरना है
मेरा हाथ पकड़ कर बोली वो लड़की
प्यार किया तो दुनिया से क्या डरना है
बापू से आखि़र हमने कुछ तो सीखा
बात-बात पर आन्दोलन है धरना है
मेरे रोने पर कितने खुश दिखते थे
मेरा हँसना उनको बहुत अखरना है
संघर्षों से भागो नहीं ‘अकेला’ तुम
आग में तप कर सोना और निखरना है