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यक़ीन / विमलेश त्रिपाठी
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05:54, 11 नवम्बर 2011
मरा नहीं है
जिन्दा
ज़िन्दा
है आदमीअब भी थोड़ा
-
सा चिड़ियों के मन में
बस ये दो कारण
काफी
काफ़ी
हैंपरिवर्तन की कविता के
लिए।
लिए ।
</poem>
अनिल जनविजय
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