हँसिया की धार! बार-बार हँसो तुम।
हँसो और धार-धार तोडकर तोड़कर हँसोपुरइन के पात लहर ओढकर ओढ़कर हँसो
जाडे की धूप आर-पार हँसों तुम
कुहरा हो और तार-तार हँसो तुम।
घाटी के गहगहे कछार हँसों तुम।
हरसिंगार की फूली टहनियां टहनियाँ हँसो
निंदियारी रातों की कुहनियाँ हँसो
बाँहों के आदमकद ज्वार हँसो तुम
मौसम की चुटकियाँ हजार हँसो तुम।
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