कंधे झुक जाते है जब बोझ से इस लम्बे सफ़र के <br />हांफ जाता हूँ में मैं जब चड़ते चढ़ते हुए तेज चढाने <br />सांसे रह जाती है जब सीने में एक गुच्छा हो कर <br />और लगता है दम टूट जायेगा येही यहीं पर <br />
एक नन्ही सी नज़्म मेरे सामने आ कर <br />मुझ से कहती है मेरा हाथ पकड़ कर, -मेरे शायर <br />ला , मेरे कन्धों पे रख दे, <br /> में तेरा बोझ उठा लूं .... गुलज़ार<br />