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पानी के संस्मरण / रघुवीर सहाय
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19:16, 18 दिसम्बर 2011
बयार : खिड़की पर खड़े, आ गई फुहार
रात : उजली रेती के पार; सहसा दिखी
शान्त नदी गहरी
मन में पानी के अनेक संस्मरण हैं ।
</poem>
अनिल जनविजय
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