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निष्ठुरता / जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद'
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05:33, 22 दिसम्बर 2011
सब खो, पाया मैंने यह वर
::तेरे चरम प्रणय में।
जो
ओ
निष्ठुरते, दूर लक्ष्य की-
::दुर्लभते, तू मेरी!
संकट-स्नेही असफल उर को
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