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13:15, 18 फ़रवरी 2012 {{KKGlobal}}
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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
| संग्रह =
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<poem>
ये हक़ीक़त या ख़्वाब है कोई
सामने बेनक़ाब है कोई
उसकी मदहोश कुन नज़र है या
मदभरी सी शराब है कोई
प्यार नज़रों से छलका पड़ता है
इस अदा का जवाब है कोई
जानलेवा तेरी अदाओं से
बहका बहका जनाब है कोई
वक़्त से पहले ही संभल जाए
करता आदत ख़राब है कोई
जिससे नीयत ख़राब हो जाए
लाता ऐसा शबाब है कोई
मुझको लगता नहीं है ऐ ख़ालिक़
रहमतों का हिसाब है कोई
मेरे ख़त के जवाब में गाली
यार ये भी जवाब है कोई
चाँद पर छाये ऐसे बादल हैं
रुख़ पे जैसे नक़ाब है कोई
ज़िन्दगी क़ैद-ए-बा मशक्कत है
इससे बढ़कर अज़ाब है कोई
शर्म से पलकें झुकती जाती हैं
आँख में भी हिजाब है कोई
बन्दगी में तेरी किफायत क्यों
रहमतों का हिसाब है कोई
एक मुफलिस की लूटना इज़्ज़त
इससे बढ़कर अज़ाब है कोई
जिसकी मन्नत न हो यहाँ पूरी
ऐसा क़िस्मत खराब है कोई
रोल्स रायस में कचरा ढ़ोता था
देखा ऐसा नवाब है कोई
जिसको देखो 'रक़ीब' पढ़ता है
जैसे चेहरा किताब है कोई
</poem>