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पावस रोज ही / सुशीला पुरी
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पावस रोज ही
भीगना
सिर्फ पावस में ही नहीं होता
उसकी बातें
भिगोती हैं
रोज ही
धरती की तरह
धानी चूनर
ओढ़ लेती हूँ मैं ।
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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