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लड़ता रहा उमर भर मैं / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान
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16:55, 16 मार्च 2012
'''लड़ता रहा उमर भर मैं'''
लड़ता रहा उमर भर मैं
विपरीत हवाओं से
पर न हिले दृढ़ रहे इरादे
चाबुक दिखला जड़ने चाहे
ओठों पर ताले
अंगारों पर चला रात दिन
नंगे पाँवों से
काँटे चुभे डगर भर फिर भी
हार नहीं मानी
रोक न पाया मुझे समय का
धारदार पानी
Sheelendra
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