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अबकी बार कहाँ ले जाएँ / राजेश शर्मा
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12:36, 9 अप्रैल 2012
<poem>
अबकी बार कहाँ ले जाएँ ,
यर
ये
व्यापार कहाँ ले जाएँ,ढाई आखर लुटे यहाँ भी
,
बन्दनवार कहाँ ले जाएं .
साथ किनारों ने छोड़ा है,तूफानों ने,भ्रम तोड़ा है.
राजेश शर्मा
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