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{{KKRachna
|रचनाकार='अना' क़ासमी
|संग्रह=हवाओं के साज़ पर/ 'अना' क़ासमी
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<poem>
ज़ख़्म महकेंगे तो आहों में असर भी आएगा
रफ़्ता-रफ़्ता शेर कहने का हुनर भी आएगा

मंज़िलों के ज़िक्र को मिटने न देना वाइज़ो
हौसले ज़िंदा हैं तो अज़्मे-सफ़र<ref> यात्रा का दृढ़ निश्चय</ref> भी आयेगा

रो पड़ेगी चश्मे-दौरा<ref> वर्तमान की आँखे</ref> अपना चेहरा देखकर
जब क़लम की नोंक पर ख़ूने जिगर भी आयेगा

खा रहा हूँ एक मुद्दत से फ़रेबे-ज़िन्दगी
सोचना हूँ कोई लम्हा मौतबर<ref> विश्वसनीय</ref> भी आयेगा

ऐ ‘अना’ अपने लिए चुन ले सिराते मुस्तकीम<ref>सद्मार्ग</ref>
हाँ अगर कुछ रास्ता जे़रो-ज़बर<ref> ऊँचा-नीचा</ref> भी आयेगा

जुस्तजू में जिसकी जो है उसका मिलना लाज़मी
ऐ ख़ुदा इक दिन न इक दिन तू नज़र भी आएगा
<poem>
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