भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़ख़्म महकेंगे तो आहों में असर भी आएगा / ‘अना’ क़ासमी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़ख़्म महकेंगे तो आहों में असर भी आएगा
रफ़्ता-रफ़्ता शेर कहने का हुनर भी आएगा

मंज़िलों के ज़िक्र को मिटने न देना वायज़ों
हौसले ज़िंदा हैं तो अज़्मे-सफ़र भी आयेगा

रो पड़ेगी चश्मे-दौरॉ अपना चेहरा देखकर
जब क़लम की नोक पर ख़ूने जिगर भी आयेगा

खा रहा हूँ एक मुद्दत से फ़रेबे-ज़िन्दगी
सोचना हूँ कोई लम्हा मोतबर भी आयेगा

ऐ ‘अना’ अपने लिए चुन ले सिराते मुस्तकीम
हाँ अगर कुछ रास्ता जे़रो-ज़बर भी आयेगा

जुस्तजू में जिसकी जो है उसका मिलना लाज़मी
ऐ ख़ुदा इक दिन न इक दिन तू नज़र भी आएगा