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गुल जो दामन में समेटे हैं शरर देख लिया / ‘अना’ क़ासमी
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07:12, 29 मई 2012
मेरे क़ातिल ने मिरा दामने-तर देख लिया
ख़ौफ़ सा है मिरे पहलू की हर इक शय पे मुहीत<ref
>
व्याप्त</ref>
दिल का ग़म भी है मगर चोर ने घर देख लिया
वीरेन्द्र खरे अकेला
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