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मंजिल / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
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07:18, 3 अगस्त 2012
क्या करूँ मैं ?
मेरी
मंजिल
मंज़िल
दूर है, प्रभु
मगर
क्या यह मेरी
मंजिल
मंज़िल
नहीं ?
</poem>
अनिल जनविजय
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